NOT KNOWN FACTS ABOUT HINDI KAHANI

Not known Facts About hindi kahani

Not known Facts About hindi kahani

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hindi kahani for kids

बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताय कहानी

कहानियाँ हैं। इनके सभी कहानियाँ पनघट, सुदर्शन सुधा, तीर्थ यात्रा आदि कहानी-संग्रहों में संग्रहित है।

इसी कोटि की कहानियाँ हैं। 'दोजख की आग', इन्द्रधनुष आदि आपके कहानी-संग्रह हैं।

युग की आरम्भिक कहानियाँ पुराने स्वरूप की थी। जिनका कथानक अलौकिक चमत्कारों से

कष्टों के दो ही कारण हैं- एक धार्मिक अंधविश्वास और सामाजिक रूढ़ीवादिता और दूसरा

प्रेमचन्द ने अपनी कहानियों के पात्र गरीब, बेबस और दबे-कुचले लोगों को बनाया। इन सबके अन्दर गुप्त

लंगड़ा राक्षस भाग १ राजा विजयकेतु सच्चा प्रजापालक था। उसके राज्य में पूर्णरूप से सुख-समृद्धि का निवास था। उसके इस यश और वैभव को देखकर उसके पड़ोसी राजा ईर्ष्या किया करते थे। एक बार राजा अपनी नवोढ़ा ...

उस दिन बड़े सबेरे जब श्यामू की नींद खुली तब उसने देखा—घर भर में कुहराम मचा हुआ है। उसकी काकी उमा एक कंबल पर नीचे से ऊपर तक एक कपड़ा ओढ़े हुए भूमि-शयन कर रही हैं, और घर के सब लोग उसे घेरकर बड़े करुण स्वर में विलाप कर रहे हैं। लोग जब उमा को श्मशान सियारामशरण गुप्त

कथाओं से जोड़ते हैं तो कुछ विद्वान स्वामी गोकुल नाथ की चौरासी वैष्णवन की वार्ता

की सामग्री बनाया। दो आस्थाएँ, गरीब की हाय, निर्धन कयामत का दिन, गोरख धन्धा आदि कहानियाँ इनकी महत्वपूर्ण कहानियाँ हैं।

'क्यों बिरजू की माँ, नाच देखने नहीं जाएगी क्या?' बिरजू की माँ शकरकंद उबाल कर बैठी मन-ही-मन कुढ़ रही थी अपने आँगन में। सात साल का लड़का बिरजू शकरकंद के बदले तमाचे खा कर आँगन में लोट-पोट कर सारी देह में मिट्टी मल रहा था। चंपिया के सिर भी चुड़ैल मँडरा फणीश्वरनाथ रेणु

मानवतावाद को एक नया प्रकाश दिया, प्रेमचन्द ने जहाँ अपनी कहानियों के माध्यम से समाज में

अगर कबरी बिल्ली घर-भर में किसी से प्रेम करती थी तो रामू की बहू से, और अगर रामू की बहू घर-भर में किसी से घृणा करती थी तो कबरी बिल्ली से। रामू की बहू, दो महीने हुए मायके से प्रथम बार ससुराल आई थी, पति की प्यारी और सास की दुलारी, चौदह वर्ष की बालिका। भंडार-घर भगवतीचरण वर्मा

वह बात न मीरा ने उठाई, न ख़ुद उसने। मिलने से पहले ज़रूर लगा था कि कोई बहुत ही ज़रूरी बात है जिस पर दोनों को बातें कर ही लेनी हैं, लेकिन जैसे हर क्षण उसी की आशंका में उसे टालते रहे। बात गले तक आ-आकर रह गई कि एक बार फिर मीरा से पूछे—क्या इस परिचय को स्थायी राजेंद्र यादव

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